Manthan

The real agitation

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Location: India

Hawa ki ore nahi mudte Aashana hum wo hai jo Hawa ka rukh apni ore modte hai....

Sunday, April 13, 2008

Mera Mann

मेरा मन,अंतर का कवि
रोज़ छटपटाता है, कलम उठता है
कुछ सृजन करने क लिए
ये चाहता है उकेरना
मनन में कुलबुलाती वेदनाएं,संवेदनाएं
वेदनाएं जो असह्य हैं
संवेदनाएं जो असंख्य हैं,अकथ्य हैं………….

कविता की नदी न जाने कहा मुडती है
गिरती संभलती उधर ही चलती है
उससे खुद नहीं पता धरा कहाँ है
किनारा कहाँ है !!!!!!!!!!!

नदी चाहती है अपने आवेग में
सब कुछ समेटना
अपने आवेश में सब कुछ नष्ट कर देना
नदी चाहती है धो देना
चेहरे के नक्आबों को
चाहती है हटाना मन पर डाले
बेहिसाब हिजाबों को ……

कवइ मन कभी है विनम्र,तरल
फिर खुद ही हो जाता है विकल
ढूँढता है अपनी ही रचनाओ में
कही से जीने का संबल
रचनायें मनन की संरचना को
शायद बनाए सबल ……..

कवइ मन आज बन छुका है पत्थर
संवेदनाएं उस पर सर पटक रही हैं
शब्द कही अन्दर ही सिमट रहे हैं
दर्द कही अन्दर ही घुट रहे हैं
मन नहीं चाहता ये बाहर आये
दुनिया को बताये के
कमजोर हो गए हैं हम
शायद कुछ पलों में टूट के
बिखर भी जाए हम……

टुकड़े इतने होंगे की कोई
गिन भी नहीं सकेगा
जोड़ने वाले कम हैं, टुकड़े असंख्य
शायद जुड़ भी न पाए अब
शायद टुकड़े और ज्यादा तोड़ दिए जाएँ

नदी आज न जाने कहा mud रही है
खुद वो भी नहीं जानती
शायद सागर उससे कभी न मिले
शायद किनारे छूट जाए,हौसले टूट जाए
शायद सारा पानी ही सूख जाए
शायद………शायद……..
शायद नदी गुम हो जाए
संवेदनाओ के रेगिस्तान में !!!!!!!!!!!!!

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